Wednesday, January 9, 2019

कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि एवं भारतीय रुपये में गिरावट- एक विवेचना

वस्तुओं का विनिमय किसी भी अर्थव्यवस्था का मूलभूत आधार है। वर्तमान युग में औद्योगिकीकरण एवं वैश्वीकरण ने मानव आवश्यकताओं को और अधिक विस्तृत कर दिया है। उदारीकरण ने विपणन को प्रोत्साहित किया, जिससे वस्तुओं का क्रय-विक्रय किसी देश की सीमा तक भर संकुचित न रह गया। भारत भी इसके प्रभाव से परे नहीं है। कच्चे तेल का आयात, भारतीय अर्थव्यवस्था को सुचारु ढंग से चलाने हेतु अत्यंत आवश्यक है। कारण कि अर्थव्यवस्था का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जो ईंधन रहित हो। 

कारण:-
अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वस्तुओं के विनिमय के लिए "डॉलर" को मानक मुद्रा के रूप में चयन किया गया है। अर्थात  किसी भी विदेशी वस्तु के आयात के लिए व्यापारियों के पास पर्याप्त "डॉलर" राशि होनी चाहिए। भारत में यह डॉलर उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक के विदेशी मुद्रा कोष से प्राप्त होता है। भारतीय रिज़र्व बैंक व्यापारियों को वर्तमान डॉलर-रुपये  विनिमय दर के अनुसार रुपये के बदले वांछित डॉलर प्रदान करती है। विनिमय दर मुद्रा की माँग-आपूर्ति पर निर्भर करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक अथवा सरकार का हस्तक्षेप केवल विषम परिस्थितियों में ही होता है, जिसमें मुद्रा की कीमत में अप्रत्याशित वृद्धि या कमी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि किसी कारणवश डॉलर या रुपये की मांग में वृद्धि हुई, तो उस मुद्रा की कीमत में बढ़ोतरी होगी और वह बाज़ार में दूसरी मुद्रा के मुकाबले मज़बूत होगा। अन्य शब्दों में वह मुद्रा महँगी हो जाएगी। कच्चे तेल के आयात में उपर्युक्त घटनाचक्र कार्य करता है। कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि होने से व्यापारियों को अधिक डॉलर का व्यय करना पड़ता है। परिणामस्वरूप डॉलर की माँग बढ़ जाती है और उसकी कीमत में वृद्धि हो जाती है। यानी एक डॉलर को खरीदने के लिए व्यापारियों को अधिक रुपये की ज़रुरत पड़ती है। फलतः डॉलर मज़बूत एवं रुपये कमज़ोर हो जाता है। 

प्रभाव:-
1. किन्तु, रुपये में गिरावट की वजह से भारतीय वस्तुएँ विदेशों में सस्ती हो जाती हैं और निर्यात में वृद्धि देखने को मिलती है। यह स्थिति एक सुखद चित्र प्रस्तुत करती है। पर जहाँ तक भारतीय अर्थव्यवस्था का सवाल है, वस्तुओं का आयात जिस दर से होता है, उस दर से निर्यात नहीं हो पाता। अतः भारत का चालु खाता घाटा हमेशा ऋणात्मक ही रहता है।

2. भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, मुद्रास्फीति का परिचायक है। इस सूचकांक का मान ज्ञात करने में पेट्रोल, डीजल का भी कुछ प्रतिशत योगदान होता है। कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि का सीधा प्रभाव पेट्रोल, डीजल के मूल्य पर पड़ता है। इससे मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है, जिसके भुक्तभोगी आम लोग होते हैं। 

3. भारतीय सरकार पेट्रोल, डीजल के उत्पादन में अनुवृत्ति प्रदान करती है, जिसका वहन राजकोष से होता है। कच्चे तेल की मूल्यवृद्धि के सन्दर्भ में राजकोषीय घाटा एक वीभत्स छवि प्रस्तुत करता है। वित्तीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम, 2003 के लक्ष्य के अनुरूप राजकोषीय घाटा को सकल घरेलु उत्पाद के 3 प्रतिशत तक सीमित रखना है। अतः सरकार को बढ़ती अनुवृत्ति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। 

कच्चे तेल के उत्पादन में "गल्फ राष्ट्र" का आधिपत्य है, जिस पर अनेक देश आश्रित हैं। संकट की किसी भी परिस्थिति में सभी व्यापक ढंग से प्रभावित होंगे। अक्षय उर्जा का चयन करके विश्व ने उस दिशा में कदम बढ़ाये हैं, जो भविष्य में कच्चे तेल की वजह से आने वाले किसी भी आकस्मिक संकट के निराकरण में लाभकारी सिद्ध होगा।

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